पृथ्वीराज चौहान के पानीपत युद्ध हारने के बाद ” संयोगिता ” का किया हुआ था .
By: admin
Published: April 4, 2020
संयोगिता , दिल्ली की राज गद्दी पर बैठने वाले अंतिम हिंदु शासक और भारत के महान वीर योद्धाओं में शुमार पृथ्वीराज चौहान की पहले प्रेमिका सिर 13 वी पत्नी बनी .
संयोगिता का जीवन परिचय –
नाम – संयोगिता .
जन्म स्थान – कन्नौज .
पिता – जयचंद्र .
जीवन संगी – पृथ्वीराज चौहान .
संयोगिता का जन्म कन्नौज प्रदेश में हुआ था . संयोगिता के पिता का नाम जयचंद्र राठौर था . जयचंद्र पृथ्वीराज की यश वृद्धि से ईष्या भाव रखते थे . एक दिन कन्नौज में एक चित्रकार पन्नाराय आया जिसके पास भारत के महारथियों के चित्र थे और उन्हीं में से एक चित्र था ,दिल्ली के युवा शासक पृथ्वीराज चौहान का . जब वह गांव में चित्रों का प्रदर्शन कर रहा था . गांव की महिलाओं को जो चित्र सबसे अधिक पसंद आ रहा था वह चित्र था पृथ्वीराज चौहान का गांव की सभी महिलाए पृथ्वीराज चौहान के चित्र की प्रशंसा करते नही थक रही थी . यह खबर जब संयोगिता को हुई तो वह भी उस चित्र को देखने के लिए अपनी सहेलियोंं के साथ आयी तो वह भी पृथ्वीराज चौहान का चित्र देख कर उन पर मोहित हो गई.
चित्रकार भी संयोगिता की सुंदरता देख संयोगिता का चित्र बनाए बगैर ना रह सका . चित्रकार ने संयोगिता का चित्र बना कर अपने पास रख लिया .
दिल्ली पहुंच कर चित्रकार ने संयोगिता का चित्र पृथ्वीराज चौहान को दिखाया . जिसे देखकर पृथ्वीराज चौहान के मन में संयोगिता के लिए प्रेम उमड़ पड़ा और वो संयोगिता को अपनी 13वीं पत्नी बनाने के सपने देखने लगे .
पृथ्वीराज चौहान की 12 पत्नियां पहले से थी –
(1) जम्भावती पडिहारी .
(2) पंवारी इच्छनी .
(3) दाहिया .
(4) जालंधरी .
(5) गूजरी .
(6) बडगू .
(7) पादवी पद्मावती .
(8) यादवी शशिव्रता .
(9) कछवाही .
(10) पुडीरनी .
(11) शशिव्रता .
(12) चंद्रवती .
(13) संयोगिता .
संयोगिता का स्वयंवर –
इस घटना के कुछ समय बाद जयचंद्र ने अपनी पुत्री संयोगिता के स्वयंवर का आयोजन किया . इसमें विभिन्न राज्योंं के राजकुमारोंं और महाराजाओं को आंमंत्रित किया .लेकिन पृथ्वीराज चौहान से अपनी कट्टरता और दुश्मनी के कारण दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान को इस स्वयंवर के लिए आमंत्रण नही दिया . तथा अपमान करने के लिए पृथ्वीराज चौहान के स्थान पर पृथ्वीराज चौहान की मूर्ति रख दी .
राजकुमारी संयोगिता जब वर माला लिए सभा में आई तो संयोगिता को पृथ्वीराज चौहान कही दिखाई नहीं दिए . अचानक संयोगिता की नजर पृथ्वीराज चौहान के स्थान पर रखी उनकी मूर्ति पड़ी तो राजकुमारी संयोगिता ने आगे बढ़कर पृथ्वीराज चौहान की मूर्ति पर माला डाल दी . संयोगिता द्वारा पृथ्वीराज चौहान के गले में वरमाला डालते देख संयोगिता के पिता जयचंद्र आग बबूला हो गया.
संयोगिता के स्वयंवर में पृथ्वीराज चौहान भी भेष बदलकर सभा में एक जगह खड़े थे . जब संयोगिता द्वारा अपनी प्रतिमा के गले में वरमाला डलते देख पृथ्वीराज चौहान ने जयचंद्र के सामने आकर उनकी पुत्री संयोगिता का हाथ मांगा . लेकिन जयचंद्र स्वयंवर के लिए राजी नही हुए .
बलपूर्वक पृथ्वीराज चौहान संयोगिता को उठाकर दिल्ली के लिए चल दिए . पृथ्वीराज चौहान के दिल्ली जाते समय राह में जयचंद्र और पृथ्वीराज चौहान के बीच एक युद्ध हुआ जिसे बड़ी सरलता के साथ दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान जीत लेते है .
बदला – जयचंद्र और मोहम्मद गौरी की दोस्ती .
दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान से मोहम्मद गौरी 16 बार हार का स्वाद चख चुका था . लेकिन इस बार जयचंद्र ने पृथ्वीराज चौहान से बदला लेने के लिए मोहम्मद गौरी से मित्रता की और दिल्ली पर आक्रमण कर दिया . जयचंद्र ने गद्दारी करते हुए गौरी को सैन्य मदद दी और यही एक बड़ा कारण बना . अब मोहम्मद गौरी की ताकत दोगुनी हो गयी . इस बार के युद्ध में पृथ्वीराज चौहान , मोहम्मद गौरी द्वारा पराजित होने पर पृथ्वीराज चौहान को मोहम्मद गौरी के सैनिकों द्वारा उन्हें बंदी बना लिया गया .
” मोहम्मद गौरी हारे हुए पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाकर अपने साथ गजनी ले गए.”
पृथ्वीराज चौहान का दिल्ली महल और संयोगिता –
“मोहम्मद गौरी अपने सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली की राज गद्दी सौप देता है और खुद गजनी चला जाता है .”
कुतबुद्दीन दिल्ली पर चढ़ाई करता है . लेकिन समय निकलने के बाद भी वह किले को नही जीत पाता . पृथ्वीराज चौहान के दिल्ली स्थित महल में संयोगिता के साथ कुछ रानियां और सेवक ,सैनिक मौजूद थे.
कुतुबुद्दीन के लिए सबसे बड़ी समस्या यह थी कि किले के बाहर एक विशाल खाई थी जिसमें यमुना नदी का पानी बहता था, साथ ही इस किले की दीवार को लांघना और तोड़ना शत्रु के लिए असंभव था. इसलिए कुतुबुद्दीन बहुत निराश हो चुका था . फिर उसने किले और संयोगिता को जीतने का फैसला किया और सैनिकों अथक प्रयास के बाद वो किले तक पहुंच गए. जब हाथियों ने किले का दरवाजा तोड़ने का प्रयास किया . लेकिन दरवाजे पर भारी फाटक लगे थे तथा कीले जड़ी थी . हाथी जब भी फाटक की तरफ बढ़ते तो चीहाड़ते हुए पीछे हट जाते . हर तरह से निराश होने के बाद अंत में किले के सामने जयचंद्र के पुत्र धीरचंद्र को खड़ा कर दिया गया.
धीरचंद्र के शरीर में हाथियों ने टक्कर मारी तो वह दुर्ग से चिपक गया और किले का फाटक टुट गया .
” लेकिन जब तक रानी संयोगिता जौहर कर चुकी थी ”